बैंकिंग लिक्विडिटी संकट (Banking Liquidity Crisis) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बैंक जमा और कासा (CASA) अनुपात में गिरावट आती है, जो सीधे बैंकों और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। हाल ही में, RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जमा दरों में गिरावट देखी जा रही है। इसका कारण यह है कि लोग अपनी बचत को म्यूचुअल फंड, शेयर बाजार, सोना, और रियल एस्टेट जैसे वैकल्पिक निवेशों में लगाने लगे हैं। बैंक जमा में गिरावट के कारणBanking Liquidity Crisis, 2020 से 2022 के बीच, मुद्रास्फीति की दर बैंक एफडी की ब्याज दरों से अधिक थी, जिससे लोगों को अपने बैंक जमा से पैसे निकालने पर मजबूर होना पड़ा। इसी के परिणामस्वरूप, बचत बैंक जमा और कासा अनुपात में गिरावट आई। वर्ष 2024 में कासा अनुपात 43.5% से घटकर 41% रह गया है। बैंकों और अर्थव्यवस्था पर प्रभावबैंकों की जमा राशि में गिरावट, बैंकिंग प्रणाली को उधार देने में कमी का सामना करने के लिए मजबूर करती है। बैंकों की प्रमुख आय का स्रोत 'नेट इंटरेस्ट मार्जिन' (NIM) होता है, जो जमा पर कम ब्याज देकर और उधार पर अधिक ब्याज वसूल कर प्राप्त होता है। जब बैंकों की जमाराशियों में कमी आती है, तो उनके पास उधार देने के लिए कम धन रहता है। व्यापक आर्थिक निहितार्थयदि यह संकट जारी रहता है, तो बैंक कम ऋण देने के कारण उपभोग में गिरावट देख सकते हैं, जो भारत की GDP को प्रभावित करेगा, क्योंकि खपत भारतीय GDP का 55-60% हिस्सा है। निष्कर्षयह स्थिति बैंकों के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती है, जिससे अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसे देखते हुए, आरबीआई ने बैंक जमाओं को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता बनी रहे और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके। Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल सूचना के लिए है। निवेश करने से पहले एक प्रमाणित निवेश सलाहकार से परामर्श करें। Finowings आपके किसी भी प्रकार के लाभ या हानि के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
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